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रथ यात्रा और भगवान् श्रीकृष्ण का दृष्टिकोण

भगवान श्रीकृष्ण जी का दृष्टिकोण

*रथ यात्रा और भगवान् श्रीकृष्ण का दृष्टिकोण*

योगेश्वर भगवान कृष्ण को पृथ्वी पर अवतार लिए यह 5254वाँ वर्ष चल रहा है ।

बात द्वारिका की है एक दिन अचानक उत्कल प्रदेश जिसे वर्तमान में उड़ीसा कहतें है का एक दूत द्वारिका की सभा में आता है और कहता है कि असली वासुदेव कृष्ण तो मेरे राजा पौंड्रक हैं तुम तो एक ग्वाले हो जिसके हाथ और कपड़ों से गोबर की दुर्गन्ध आती है ।एक छोटे से मायावी को कैसे वासुदेव माना जा सकता है यदि तुममे साहस है तो राजा पौंड्रक से युद्ध करके दिखाओ। सारी राज सभा दूत के ऐसा कहने पर अचंभित हो जाती है बलराम जी और सात्यकि जी दूत का वध करने के लिए अपने शस्त्र निकाल लेते हैं तब कृष्ण जी कहते हैं दूत के साथ यह व्यवहार अनुचित है।

राजा पौंड्रक मोर पंख वस्त्र और मुरली भी बिलकुल भगवान कृष्ण जैसी ही धारण करते थे ।तब भगवान कृष्ण स्वयं के नए वस्त्र उस दूत को भेट करते हैं तथा उत्तक्ल प्रदेश में युद्ध का आमन्त्रण स्वीकार करते है

भगवान कृष्ण बलराम जी एवं उद्धव जी अपनी सेना लेकर राजा पौंड्रक के पास जाते हैं वहाँ भगवान् कृष्ण एवं पौंड्रक में भयंकर युद्ध होता है ।राजा पौंड्रक युद्ध मे हार जाता है किन्तु अहंकारी होने के कारण भगवान कृष्ण को पुनः पुनः ललकारता है।तब भगवान् कृष्ण पौंड्रक का वध कर देते हैं।युद्ध स्थल से शाम के समय पूरी नामक कस्बे में आते हैं।तथा रात्रि पूरी में समुद्र के किनारे विश्राम करते हैं।प्रातः पूरी के समुद्र पर भगवान् कृष्ण बलराम जी एवं उद्धव जी सूर्य को अर्ध्य प्रदान करते हैं।जैसे ही यह बात पूरी के लोगों को ज्ञात होती है कि भगवान कृष्ण पूरी में हैं तब सभी लोग भगवान् कृष्ण के दर्शन हेतु समुद्र के किनारे पहुँचते है ।पूरी के राजा भी वहां जाकर भगवान् कृष्ण से आशीर्वाद मांगते हैं और उन्हें अनुरोध करते हैं आप रथ में चढ़ कर पूरी में भ्रमण करें और हमे अपना आशीर्वाद प्रदान करे ।भगवान् कृष्ण मान जाते हैं तथा रथ से पूरी में भृमण करते हैं।जैसे ही रथ यात्रा पूर्ण होती है भगवान् कृष्ण से पूरी के राजा कहते है —

आप नाथ हैं ,आप नाथों के नाथ हैं ,आप इस जगत के नाथ हैं मैं आपके नाम से पूरी में जगन्नाथ का मन्दिर बनवाना चाहता हूँ और इस पूरी का नाम जगन्नाथ पूरी रखकर प्रति वर्ष जगन्नाथ रथ यात्रा इसी दिन निकालना चाहता हूँ ।आप आज्ञा प्रदान करें ।

भगवान् कृष्ण पूरी के राजा के कंधे पर हाथ रखते हैं मुस्कुराते हुए कहते हैं —- राजन तुम यह कर सकते हो किन्तु यह याद रखना कि मैं बलराम भैया और सुभद्रा बहन के बगैर अधूरा हूँl

तब पूरी के राजा ने वहां भगवान् कृष्ण बलराम जी एवं बहन सुभद्रा जी के मंदिर का निर्माण करवाया ।

जगन्नाथ पूरी हिंदुओं का पवित्र धाम हैl

भगवान् कृष्ण का दृष्टिकोण था पारिवारिक एकता ही जीवन में प्रगति सुख एवं समृद्धी प्रदान करती है ।व्यक्ति को सदैव छोटे मोटे मतभेदों को परिवार से दूर रखना चाहिए ।परिवार का सुख समाज को सकारत्मक रूप से प्रभावित करता है तथा परिवारों से समाज का निर्माण होता है ।

एक विशेष अनुरोध सभी से जब भी जगन्नाथ पूरी जी दर्शन हेतु जाएँ तब सभी भाई बहनों एवम् सम्पूर्ण खानदान को लेकर जाएँ तथा भगवान् कृष्ण के दृष्टिकोण के अनुसार पारिवारिक एकता को प्रदर्शित करे तथा प्रगति एवं सुख प्राप्त कर भगवान् कृष्ण को प्रसन्न करें।

*जय जगन्नाथ*

जयप्रकाश शुक्ला 

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