जयंती

भारत माता के वीर योद्धा थे महाराणा प्रताप

वीर योद्धा महाराणा प्रताप ने कभी आत्मसम्मान से नहीं किया समझौता

­वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जीवन संघर्षों से भरा था, लेकिन उन्होंने कभी अपने सम्मान और स्वतंत्रता के लिए समझौता नहीं किया। उनकी कहानी आज भी हर भारतीय के दिल में देशभक्ति की भावना जगाती है।

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप न केवल मेवाड़ के शासक थे, बल्कि वे भारतीय इतिहास में शौर्य, स्वाभिमान और मातृभूमि प्रेम के प्रतीक भी हैं।

प्रति वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया तिथि को महाराणा प्रताप जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह दिन हमें उनकी असाधारण वीरता और अद्वितीय बलिदान की याद दिलाता है।

महाराणा प्रताप का सबसे प्रसिद्ध युद्ध ‘हल्दीघाटी युद्ध’ था, जो 1576 में अकबर की सेना से लड़ा गया।  इस युद्ध में महाराणा की वीरता ने मुगलों की नींव हिला दी। अपने घोड़े चेतक के साथ उन्होंने जो साहस दिखाया, वह आज भी भारत के हर कोने में प्रेरणा देता है। आज के दौर में भी जब लोग महाराणा प्रताप का नाम लेते हैं, तो सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।

अकबर के सामने नहीं टेके घुटने

महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की गद्दी संभालने के बाद मुगल सम्राट अकबर के आधिपत्य को स्वीकार करने से साफ इनकार कर दिया। उन्होंने जीवन भर स्वतंत्रता की रक्षा के लिए संघर्ष किया और कभी भी मुगलों के सामने घुटने नहीं टेके। वे उदयपुर, चित्तौड़ और आसपास के क्षेत्रों के शासक रहे, लेकिन अधिकांश समय उन्होंने पहाड़ों और जंगलों में रहकर गुरिल्ला युद्ध नीति के माध्यम से मुगलों से लोहा लिया।

महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक भी इतिहास में अपनी वीरता के लिए अमर है। चेतक ने कई बार महाराणा की जान बचाई और अंत तक उनका साथ दिया।

आज के दौर में जब देशभक्ति और आत्मसम्मान की जरूरत पहले से कहीं ज्यादा है, महाराणा प्रताप की जयंती हमें अपने संस्कृति, इतिहास और राष्ट्र प्रेम से जुड़ने का अवसर देती है। उनका जीवन संदेश देता है कि परिस्थिति चाहे कैसी भी हो, कभी आत्मसम्मान से समझौता नहीं करना चाहिए।

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