सज्जनों जयश्रीकृष्ण !
भारतीय जन मानस में एक ओर मर्यादा पुरुषोत्तम के रुप में श्रीराम को तो दूसरी ओर पूर्ण पुरुषोत्तम के रुप में श्रीकृष्ण के प्राकट्य को क्रमशः रामनवमी+व जन्माष्टमी
के साथ धूमधाम से मनाए जाने की सुदीर्घ परंपरा विद्यमान है ! इन दोनों अवतारों केप्रगट होने के समय में परिलक्षित अद्भुत साम्य पर हम आज आत्मचिंतन करें !
रामनवमी के ठीक मध्यान्ह काल में प्रभु राम तो रात्रि के मध्यकाल में प्रभु कृष्ण का जन्म हमारे ग्रंथों में वर्णित
है ! इस मध्य शब्द के आध्यात्मिक व गूढ़ अर्थ को हमने समझना चाहिए ! मध्य रात्रि व मध्यदिवस कोएक विशेष
दृष्टि से हमें देखना चाहिए !
निर्गुण निराकार ब्रम्ह ने अपने को सगुण साकार में प्रगट करने के इन दोनो ही अवसर पर मध्य काल का चयन ही क्यों किया है? मध्यरात्री में जहां अंधकारजहां अपने चरम उत्कर्ष में होता है ,वहीं मध्य दिवस में प्रकाश की सर्वोच्च स्थिति होती है ! ईश्वर को अंधकार व प्रकाश दोनों की पराकाष्ठा में भक्तों ने पाया है ! दिन के मध्यान्ह काल में सूर्य की तुलना “ज्ञान सूर्य ” की जा सकती है !याने ज्ञान की समग्रता में ईश्वर का बोध होता है या तो मध्य रात्रि में जब चारों ओर घोर निराशा का अंधकार छाया हो तब ! अर्थात् मध्यदिवस में वह सूर्य बनकर तो रात्रि में चंद्र की शीतलता बनकर वह जीवन को आलोकित करता है !
दिन में यदि स्पष्टता बनकर वह आता है तो रात्रि में शीतलता बनकर संतप्त व तप्त हृदय को अपनी कृपाकिरणोंसे सींचता है !
व्यावहारिक जगत में रात्रि का समय विश्राम काल का होता है, चिंताएं जीव को वहां सोने नहीं देती तब वह विश्राम बनता है ! दिवस में जीवन के रंगमंच पर जीव की भागदौड़ वाली दिनचर्या में वह विवेक बनकर आनंद देता है ! एक बात ओर समझ लें हम कि रात्रि में व्यक्ति को यदि काम वासना सताती है तो दिवस में लोभ व लालच तंग करता है !
अतः इन दोनों ही प्रधान आवतारों के अवतरण की प्रक्रिया में समय का साम्य और दिवस रात्रि का अंतर हमें बहुत सार्थक संदेश दे रहा है !
सज्जनों विषय विस्तार के भय से कलम को विराम दे रहा हूं, यह जानते हुए कि अत्यंत मूल्यवानपक्ष फिर भी छूट ही गए है ! सभी को जयश्रीराम +जयश्रीकृष्ण
*श्रीसीताराम चरणाश्रित*
Dr. Soochik की कलम से